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वो लम्हा अब भी जीता है

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दफन हुए वो वक्त तो क्या उन्हें याद कर ये आँखे भरता है, यादों के किसी कोने में वो लम्हा अब भी जीता है। वक्त का है बस यही बहाना नहीं कभी ठहरता है, खींची थी जो आँखों मे तस्वीरें देख उन्हें बस हिम्मत भरता है । वो लम्हा अब भी जीता है। जीता जा हर पल जो सीखा है कैद कर उन बिसरों को जो बीता है, छू कर कोने में, उसी को तू कभी हँसता तो रोता है। कल की फिक्र में तू आज खोता है तेरी जिंदगी से तेज वक्त जीता है, पनाह दे कहीं कोने में धूप में छाव सा रहता है देख कैसे वो हमें जोड़ता है। वो लम्हा अब भी जीता है।

हे मनुष्य...

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कहता खुद को विज्ञान रचयिता विचार कोई अलग रच ले प्रकृति पर तेरा वश नहीं खुद को वश में कर ले खतरे में आज मानव जाति फर्ज़ हर कोई समझ ले हे मनुष्य , बात इतनी सी समझ ले

काश... ये भी सम्भव होता!

बातों से गर बुरा लगे तो फिर हक ही क्या ? समझे न ज़ज्बातो को वो दोस्त ही क्या ? सब औपचारिक ही हो जाते गर!... काश....ये भी सम्भव होता! गर मैं ही गिरा , तुम ना उठाए ज़रूरत पर तुमको हम ना समझाए फिर ये एहसास ही क्या ? माना संवेदनशील हूँ मैं पर मुझे ना झेल पाए तो आपकी वेदना ही क्या ? इस हृदय की निचोड़ भी देख पाओ तुम काश......ये भी सम्भव होता! लगती होंगी महफ़िले आपकी सरे बाज़ार लेकिन सुकू भी कभी बिका करते है क्या? हाँ, हूँ मै नादा किये होंगे दोष मैने हज़ार परन्तु गुनाहों से मेरे जज़्बातों का तोल है क्या ? मेरी जगह पर भी रह कर देखे होते काश.... ये भी सम्भव होता! गलतियाँ उनसे(भगवान) भी हो जाती उनके भी ऊपर कोई है क्या ? ये (दोस्ती) शब्द मात्र नहीं, भावनाओं के है तार करता अभिषेक नित उन स्मृतियों की इसी में होउ गौरव मैं बारम-बार नहीं बाकी कोई गुमान आदर्श बनने की समय निकाल पढ़ लिए होते ये खुली किताब काश.....ये भी सम्भव होता!

शराब का नशा ही कुछ अजीब है

शराब का नशा ही कुछ अजीब है पहले शराब को पीने का नशा , फिर शराब को पीने के बाद वाला नशा पीने के पहले भी पीना ही समझ आता है और पीने के बाद भी पिया ही समझ आता है बाद का नशा तो लाज़मी है लेकिन पहले का नशा ज्यादा चढ़ जाता है पिने को कुछ चाहिए , इस चक्कर मे कभी कभी पेट्रोल से प्यास बुझ जाता है दोनों ही मंहगे है, फर्क कहाँ समझ आता है विशेष समझ भाव बढ़ जाता है कल शाम वाली कफ सिरप थी या पेट्रोल ये भी स्वास्थय के उतरने , चढ़ने पर समझ आता है ना paytm का कैशबैक , ना स्वाइप करने पर डिस्काउंट नशा ही इनको ठग ले जाता है कितने मासूम थे वे  , जिनको कोई भटका नहीं पाता था घर से ठेका , ठेके से घर , रास्ता भी खुद ही पाता था हरिवंश जी की मधुशाला कुजता जाता था भाव तो क्या , अर्थ भी नहीं समझ पाता था क्योंकि, शराब का नशा ही कुछ अजीब है इश्क के इजहार से लेकर राष्ट्रपति तक बन जाता था निश्चेष्ट से बात, और जानवरों से लिपट जाता था खड़े खड़े ही पाकिस्तान से लड़ जाता था माना शराब स्वास्थ्य को अपकारी है लेकिन पीने वाले को कहाँ समझ आता है उसकी क्या दशा होगी जो इसे जीवनाधार समझ जाता है क्योकि , श...

शर्मा जी की कार

शर्मा जी लाए एक नई कार झट लगा दिए निज द्वार देख वर्मा जी थे गरमाए थे आए जो कुछ हिस्से उनके द्वार मन ही मन स्नेह जताया अ दिलो दिमाग जब भर आया तब रौद्र स्वर में चिल्लाया दो (2) इंच मात्र कम है इसमें तुम्हे न जाने क्या गम है अच्छे से जब नापा-तोला तब कहीं ये शर्मा ने बोला फिर तो ऐसा बना नज़रा था मानो इंफिनिटी वॉर (infinity war )  हो रहा दोबारा था अरे हद तो तब हो गई जब दोनों के साथ घरवाली का सहारा था लेकिन बात यहीं थमी नहीं जा याचिका तक दर्ज कराई न्याय की ऊपर तक गुहार लगाई बरी कराना था वो दो (2) इंच मिठाई थी इसी वश खिलाई बड़ी बड़ी जान-पहचान  बताई थी लेकिन महीनों फाइल ऊपर न आई थी निकाल न्योछावर और भेट दिए क्योंकि रिवाज पूरी न निभाई थी सफल रिवाजों का ही परिणाम था जो लग गया तारीखों का अंबार था पैर की गर्मी दिमाग को जब चढ़ गई तब कहीं बात घर कर गई कार मात्र ही खड़ी की है किसी नाम रजिस्ट्री थोड़े हो गई परन्तु हो गई थी काफी देर जज भी सन्न , सुन ये कुरान बुला लिया गया कम्पनी का सुलेमान कहा इसमें न मेरी कोई खता है डिज़ाइनर मात्र का दोष है ये जिम्...

स्वतंत्रता दिवस : एकदिवसीय उत्साह

हर सुबह की तरह आज भी ठीक 4:30 बजे के आस-पास नींद खुल गई, शायद मौसम की वजह से तबियत थोड़ी भारी सी लग रही थी खैर, मैं बिस्तर से उठ कर छत की तरफ जाने लगा , छत पर वो शीतल हवाएँ इस तरह मुझे स्पर्श कर के गुजरती मानो मेरे जिंदगी से कुछ पल के लिए सारी मुसीबत और परेशानी को अपने साथ ले कर जा रही हो , और जब ताज़ी हवा मेरे सांसो में घुल कर अंदर जाती तो मानो हृदय मुस्कुरा उठता दिल से एक ही बात निकलती- कितनी अच्छी ज़मी पर जन्म लिया मै , मन में शांति और सुकून की एक लहर दौड़ पड़ी , ये सब चीज़े कहीं न कहीं मेरा बचपना मुझे याद दिला ही देते है , परन्तु समय से बंधे होने के कारण मैं झट नीचे उतरा और आज दोबारा बिस्तर पर न पड़ने के बजाए अपने मेज से सटे कुर्सी पर बैठ गया और मेज पर रखी एक पत्रिका के पन्नो को पलटने लगा, कुछ ही देर हुए होंगे कि सूरज ने अपनी सकारात्मक ऊर्जा के साथ मेरी खिड़की पर दस्तक दी और झांकते हुए मेज तक पहुँच गया और अलार्म की तरह कुछ याद दिलाया ,नाश्ता करने के बाद कुछ सामान लेने राशन की दुकान के लिए निकल पड़ा , आज चीज़े ही मात्र कुछ बदली-बदली नज़र आ रही थी, कपड़े स्त्री करने वाले बुजुर्ग दादा जी ने अपनी...

...वहम सब दूर हुए

उम्मीद एक बार फिर जगी की शायद वो तलाश खत्म हुए जिस कंधे पर सुना सकूँ अपनी थकां आँख खुलते वहम सब दूर हुए मैं दोष उनको देता नहीं क्योंकि इस खेल के वो संचालक नहीं गलती तो मेरी ही छिपी कहीं जो पथ से हम है भटके हुए फिर...आँख खुलते वहम सब दूर हुए इसमें भी दुआ आपकी जो अभी तक सार्थक बने हुए अन्यथा नहीं कोई झेल सका सच करीब से है जो देखे हुए फिर...आँख खुलते वहम सब दूर हुए इस करुणा कलित हृदय की आवाज मात्र ये एक है साक्षात देवता(माता-पिता) मात्र ही सच है निखिल जग अब मिथ्या हुए फिर...आँख खुलते वहम सब दूर हुए