संदेश

Story लेबल वाली पोस्ट दिखाई जा रही हैं

लाला जी बारात में

चित्र
  लाला जी बारात में   संगम नगरी के यमुना नदी के दक्षिण पश्चिम में स्थित भोले बाबा के इस मंदिर को मनकामेश्वर के नाम से जाना जाता है , जो जसरा क्षेत्र में लगता है , यहीं पास में ही एक गांव है बवंधर , जो धरा गांव के पास में ही है । वर्तमान के यातायात की सुगमता और सूचना तकनीक ने चीजों की पहुंच को बेहत सहज कर दिया है , इससे पहले लोग शादियों की खोज के बहाने नई नई जगहों को खोज कर अपने गांव भर में वास्कोडिगामा बने फिरते थे। बात लगभग 35 वर्ष पूर्व की होगी जब बवंधर गांव में बारात का स्वागत होना था , चूँ कि गांवों में किसी के घर शादी होती तो पूरे बिरादरी की जिम्मेदारी हो जाती और गांव के गांव तैयारियों में जुट जाता था , कुछ ऐसा ही दृश्य बवंधर का भी था । किसी भी चीज़ की कोई कमी न हो इसके लिए काफी दिन पहले से ही वृद्धजन अपनी सजगता दिखाते हुए युवा और किशोरों की सहायता से  देख रेख में लगे थे , उसी का परिणाम है कि किसी चीज़ में त्रुटि मिलती तो वृद्ध लोग युवाओं को और  युवा वृद्धों को कह सुना लेते और ब...

माघी स्नान

चित्र
(प्रस्तुत कथा कल्पना पर आधारित है, कृपया इसको व्यक्तिगत ना समझें। समाज में रहने के नाते मैनें भी शब्दों को संतुलित ही रखा है बाकी आप लोग समझदार हैं।) जीवन में तपस्या ही एक मात्र साधन है लक्ष्य प्राप्ति का, चाहे वो आध्यात्मिक हो, धार्मिक हो या शिक्षा के लिए हो और जहां इनका संगम देखने को मिले वो क्षेत्र प्रयाग संगम है। शिक्षा के उद्देश्य से शुभम भी स्नातक के साथ प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए अपने क्षेत्र बलिया से दूर प्रयागराज में एक छोटे से कमरे में  सिमट गया, ताकि आगे विस्तार कर सके। संगम में माघ के स्नान का महत्व क्या है ये किसी को बताने की ज़रूरत नहीं है और शायद इसीलिए शुभम के दूर के दूर के रिश्तेदार भी बिना बताए ही प्रयाग आ पहुँचे, स्टेशन पर उतर कर उन्होंने अपने बड़े से भारी बैग को नीचे न रखने के कारण दोनों पैरों के बीच में ही दबा कर खड़े हो गए, बाएं हाथ के सहारे पैंट से मोबाइल फोन निकाला और दूसरे हाथ से जैकेट खोल कर एक पर्चा निकाला जिसमें एक नंबर लिखा हुआ था। सुबह के ठीक 4 बज कर 20 मिनट पर शुभम का फोन बजने लगा, अभी थोड़ी ही देर पहले सोया था, जैसे तैसे नज़र जब फोन की...

कुमायूँ

चित्र
तरदीद – कथावस्तु, कथानक, पात्र, सभी काल्पनिक हैं, वास्तविकता से इसका कोई सरोकार नहीं है। पूरे 4 घण्टे की देरी के साथ अपने समय से आखिरकार गाड़ी मंजिल पर पहुँच ही गई, प्रशांत ने स्टेशन पर उतर कर नज़र को ऊंचा कर चाय की तलाश की,  और उसी ओर बढ़ने लगा, हल्की लाल चेकदार शर्ट, क्रीम कलर की पैंट, एक सफेद जूता, पीठ पर बैग , चेहरे पर द्वैत भाव जिसमे नौकरी की खुशी और घर से दूर होने का दर्द दोनों ही स्पष्ट था। ज्वाइन करने के बाद प्रशांत ने तुरन्त अपने क्षेत्र को कूच किया, कुमायूँ की वादियाँ उसे बेहद रोमांचित कर रहीं थी, इस रोमांच में पता ही नहीं चला कि कब वो अपने जंगल में आ पहुंचा। लोगों से सुन रखा था कि वन दरोगा का मतलब 'काम नहीं दाम सही', लेकिन उसने निश्चय किया था कि वो किसी भी भ्रष्टाचार में लिप्त नहीं होगा। अगले ही दिन सुबह-सुबह प्रशांत से मिलने माथुर जी आ पहुँचे, उम्र वही तकरीबन 45-50 और पेट को नियंत्रण में रखा हुआ था, चाल में फुर्ती , गोल गोल लबलबाती आंखे और चेहरे पर छोटी सी मुस्कान , मन में गाना गुनगुनाते अंदर घुसे चले आ रहे थे, सब खड़े हो हए , प्रशांत ने भी सलूट किया। प्रशांत- जय...

ज़िन्दगी : एक पहिया (भाग 1)

चित्र
  (चरित्र , कथानक आदि सब काल्पनिक है , किसी व्यक्ति विशेष से सम्बंध संयोग मात्र हैं) फोन खोलेते ढेरों नोटिफिकेशन में एक कमाल की खबर मिली, लम्बे इंतेज़ार के बाद भारतीय रेलवे ने बाकी ट्रेनों को भी हरी झंडी दिखाने का निर्णय लिया, इस निर्णय से भारत के पहिये को फिर गति पकड़ने की उम्मीद मिली। भारतीय रेलवे भारत की अर्थव्यवस्था का बहुत बड़ा हिस्सा है जिससे भारत का हर वर्ग लाभान्वित है इसके दूसरे पक्ष की बात की जाए तो बच्चों से लेकर बूढ़ों तक इसकी यात्रा का स्वाद मानसपटल पर चिरकाल संजोया है और कुछ लोगो के लिए ये यादे जीवन का आधार बन जाती है...       खबर अभी खत्म नहीं हुआ था कि नीलेश ने अपना फोन रख कर किचन की तरफ चल दिया क्योंकि उसे देर हो रही थी, नीलेश IT company में सेल्स विभाग में था, जिस वजह से उसे सर्वे और रिपोर्ट के चक्कर मे अक्सर यात्रा करनी पड़ती थी , " आए दिन की यात्रा से जीवन पहिये  जैसा गोल-गोल घूमने लगा है " हालाँकि अब उसका प्रमोशन हो चुका है , इन यात्राओं की उसको ज़रुरत नहीं। नौकरी लग जाना उसके ऊपर समय से तो फिर बात ही क्या है भारत के मध्य वर्ग मे न...

स्वतंत्रता दिवस : एकदिवसीय उत्साह

हर सुबह की तरह आज भी ठीक 4:30 बजे के आस-पास नींद खुल गई, शायद मौसम की वजह से तबियत थोड़ी भारी सी लग रही थी खैर, मैं बिस्तर से उठ कर छत की तरफ जाने लगा , छत पर वो शीतल हवाएँ इस तरह मुझे स्पर्श कर के गुजरती मानो मेरे जिंदगी से कुछ पल के लिए सारी मुसीबत और परेशानी को अपने साथ ले कर जा रही हो , और जब ताज़ी हवा मेरे सांसो में घुल कर अंदर जाती तो मानो हृदय मुस्कुरा उठता दिल से एक ही बात निकलती- कितनी अच्छी ज़मी पर जन्म लिया मै , मन में शांति और सुकून की एक लहर दौड़ पड़ी , ये सब चीज़े कहीं न कहीं मेरा बचपना मुझे याद दिला ही देते है , परन्तु समय से बंधे होने के कारण मैं झट नीचे उतरा और आज दोबारा बिस्तर पर न पड़ने के बजाए अपने मेज से सटे कुर्सी पर बैठ गया और मेज पर रखी एक पत्रिका के पन्नो को पलटने लगा, कुछ ही देर हुए होंगे कि सूरज ने अपनी सकारात्मक ऊर्जा के साथ मेरी खिड़की पर दस्तक दी और झांकते हुए मेज तक पहुँच गया और अलार्म की तरह कुछ याद दिलाया ,नाश्ता करने के बाद कुछ सामान लेने राशन की दुकान के लिए निकल पड़ा , आज चीज़े ही मात्र कुछ बदली-बदली नज़र आ रही थी, कपड़े स्त्री करने वाले बुजुर्ग दादा जी ने अपनी...

एक तरफा शिक्षा

तब अभिलाष कि उम्र महज 5 वर्ष की ही थी, उसके पिता (रंगलाल ) गाँव मे अधिया के खेती से अपना व अपने परिवार का भरण- पोषण करते थे, लेकिन घर की ज़रूरत और बच्चे की उम्र दोनों ही सरपत की तरह बढ़ती जा रही थी , कारण भी यही था कि रंगलाल अब शहर आकर ऑटो-रिक्शा चलाने लगा।              शहर में दूसरे बच्चों को देख रंगलाल के मन में भी अपने अभिलाष को वो सारी सुख सुविधा दे सके और उसे अच्छे से पढा-लिखा कर कुछ बनाने के सपने को और मजबूती मिलने लगी , खैर ये कोई नई बात नहीं है किसी भी पिता के लिए। कुछ दिन बात रंगलाल अपने गाँव की छोटी सी जमीन को भी बेच दिया और अपने परिवार को शहर लेकर कर आया और समाज के दूसरे वर्ग की भाँति shanty town में रहने लगा । रंगलाल ऑटो चलाता , उसकी पत्नी (साधना) लोगों के घरों में बर्तन धुलने तथा अभिलाष चौराहे पर खड़ी गाड़ियों के शीशे साफ करने का काम करते जिसके फलस्वरूप कुछ पैसे इक्कठा होते जिसे ये जमा कर करते। रोज़-रोज़ सड़क पर अभिलाष अपने उम्र के बच्चों को अच्छे-अच्छे कपड़ो में, रंग-बिरंगे बैग , पॉलिश किये हुए चमकते जूते और हाथ मे पानी की बोतल लेकर स्कूल जात...