स्वतंत्रता दिवस : एकदिवसीय उत्साह

हर सुबह की तरह आज भी ठीक 4:30 बजे के आस-पास नींद खुल गई, शायद मौसम की वजह से तबियत थोड़ी भारी सी लग रही थी खैर, मैं बिस्तर से उठ कर छत की तरफ जाने लगा , छत पर वो शीतल हवाएँ इस तरह मुझे स्पर्श कर के गुजरती मानो मेरे जिंदगी से कुछ पल के लिए सारी मुसीबत और परेशानी को अपने साथ ले कर जा रही हो , और जब ताज़ी हवा मेरे सांसो में घुल कर अंदर जाती तो मानो हृदय मुस्कुरा उठता दिल से एक ही बात निकलती- कितनी अच्छी ज़मी पर जन्म लिया मै , मन में शांति और सुकून की एक लहर दौड़ पड़ी , ये सब चीज़े कहीं न कहीं मेरा बचपना मुझे याद दिला ही देते है , परन्तु समय से बंधे होने के कारण मैं झट नीचे उतरा और आज दोबारा बिस्तर पर न पड़ने के बजाए अपने मेज से सटे कुर्सी पर बैठ गया और मेज पर रखी एक पत्रिका के पन्नो को पलटने लगा, कुछ ही देर हुए होंगे कि सूरज ने अपनी सकारात्मक ऊर्जा के साथ मेरी खिड़की पर दस्तक दी और झांकते हुए मेज तक पहुँच गया और अलार्म की तरह कुछ याद दिलाया ,नाश्ता करने के बाद कुछ सामान लेने राशन की दुकान के लिए निकल पड़ा , आज चीज़े ही मात्र कुछ बदली-बदली नज़र आ रही थी, कपड़े स्त्री करने वाले बुजुर्ग दादा जी ने अपनी दुकान के सामने एक छोटा सा प्लास्टिक का तिरंगा लटका रखा था, हालांकि प्लास्टिक के तिरंगे पूर्णतः प्रतिबंधित है, आगे ऐसे ही जलेबियाँ तल रहे "गिरी" अंकल ने भी बाहर एक तिरंगा लटका रखा था, और सामान्य जन तो सामान्य ही थे, आगे बढ़ते हुए मैं दुकान तक पहुँचा तो मुश्किल से 3-4 आदमी खड़े थे , दुकान के सामने ही थोड़ी दूर पर एक विद्यालय में स्वतंत्रता दिवस की तैयारी चल रही थी इसी वजह से शायद उत्साहवश साउंड बॉक्स से देश भक्ति के गीत बज रहे थे तब तक उन्हीं में से एक बोल पड़ा मैने उनकी तरफ नज़र घुमा कर देखा तो लगा कि इनका नाश्ता अलग ही होता  है ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती होगी , मुँह से लौंग की तीखी ,जो पान के कत्थे की मीठी सोंध में घुल कर, खुशबू आ रहा था , बाल बिखरे हुए से , पेट तो मानो शर्ट की बटन से बाहर झांक रहा हो, गोल-गोल आँख जैसे अर्द्धनिद्रा से व्याकुल हों, गाना सुनते ही बोल पड़े " अमा यार ई-तो आजहे से गाना बजाना शुरू कर दिया , भूल गवा है का की 15 अगस्त कल है" दुकानदार ने धीरे से अपना मोबाइल फोन रखा और बोला "कौनो ज़रूरी बा कि 15 अगस्त के ही गाना बजाना होए" , दोनों की बात सुनने के बाद मैंने अपना सामान लिया और वहाँ से चलता बना।
   शाम को खाली होने के बाद कुछ लोगों से व्हाट्सएप्प पर बातें हुईं
, सब कुछ बड़ा सामान्य लग रहा था, बिल्कुल लगा ही नहीं कि सुबह होते ही तारीख 15 हो जाएगी खैर, थकान के कारण जल्दी सोने की कोशिश में था और कमरे की बत्ती बंद कर के  लेट गया, अगली सुबह नाश्ता के बाद 6 बजे के आस-पास मैने व्हाट्सएप्प खोला तो ढेर सारे बधाई संदेश मिले और तो और लोगो ने अपनी स्टोरी इस तरह से लगाई थी कि मानो आधी रात को ही इनको खबर मिली हो कि ये आज़ाद हो गए या यूँ कहें कि इनको आधी रात को ही याद आया कि 15 अगस्त है आज, जो भी हो लेकिन ये अब देखने के बाद बहुत से प्रश्न आज दिमाग मे घूम रहे है-- क्या शाम तक सबकी स्टोरी ऐसी ही रहेगी? ,क्या यही उत्साह बरकरार रहेगा?, कहीं आंधी के बाद वाली स्थिति तो नहीं बन जाएगी कल?, कितने विद्यालय , संस्था , दफ्तर से झंडे को 16 से 17 तारीख के बीच ही उतर दिया जाएगा? , आज सब एक दूसरे को प्यार की नज़र से देख रहे है चाहे वो समोसे वाला हो, चाहे सफाई वाला , चाहे पूर्वी क्षेत्र से हो , चाहे दक्षित का हो, क्या कल नई सुबह के साथ हम सब फिर से धर्म, जाती, व स्थान के आधार पर अलग अलग हो जांएगे?? कुछ तो बाघा बॉर्डर या अलग अलग जगह पर सैनिकों से मिलने के बहाने गए है शायद फिर साल भर बाद ही कोई वहाँ इस तरह से जाएगा । इस तरह के अनेक प्रश्न मेरे मन मे उठ रहे थे तो सोचा आप सब के साथ साँझा करूँ, क्योकि मुझे नहीं लगता कि इस तरह के सवालों के साथ मैं अकेला हूँ। लिखने- बताने को तो बहुत कुछ है लेकिन मुझे नहीं लगता कि बिना इसको महसूस किए कोई बदलाव होगा।

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