प्रकृति से आध्यात्म
भारतीय संस्कृतियों में ब्रह्म मुहूर्त को बहुत महत्वपूर्ण समयावधि मानी गयी है जो कि सुबह 4 बजे के आस-पास का समय होता है। लगभग यही समय था, मैं बाहर निकला तो आसमान बहुत ही साफ दिख रहा था, सुबह वाले जीवों की आवाज़, चारो तरफ लोगो के जोरदार सन्नाटे , तभी मेरी नज़र सामने एक वृक्ष पर पड़ी , नीचे से ही ऊपर की तरफ ज़रा सा धनुषाकार में उसका खड़ा होना , पत्तियों का आगे की तरफ से विनम्र भाव मे सज़दा करना , इसे देख मैं सोचने लगा ; क्या पेड़ भी कभी कुछ कहना चाहते होंगे? जानवर तो फिर भी अपने इशारो से , आवाज़ के माध्यम से अपने सुख या कष्ट को व्यक्त कर सकते हैं , परन्तु वृक्ष, पेड़ , पौधे , ये पूरा वनस्पति जगत, ये आकाश, ये समुद्र , क्या ये कभी बोल सकते हैं? अगर बात कर सकते है तो क्या तरीका होगा इनको समझने का?
ये जिज्ञासाएँ होना एक मनुष्य के महत्वपूर्ण लक्षण हैं। परन्तु ये जिज्ञासा थी या मौलिकता, भेद कर पाना कठिन है , ग़ौरतलब ये है कि जिज्ञासा का उद्गम आंखों से होता है; जब चीज़े हमारी आंखों से देखी जाती है तथापि हमारे मष्तिष्क में तरह-तरह के प्रश्न कौतुहल करना आरम्भ कर देतें है। मनुष्य की ये जिज्ञासु प्रवृत्ति ही तो है जो उसे प्राचीनतम इतिहास के अध्ययन से मंगल जैसे ग्रहों तक पहुँचा सकी है।
उपर्युक्त बातों से साफ है कि जिज्ञासा मनुष्य के उत्तर-जीविका का बड़ा कारक है; तो क्या ये भी सम्भव है कि जिज्ञासु प्रवृत्ति के होने के पीछे भी कोई कारण है? ऐसे प्रश्नों में मनुष्य के जिज्ञासु प्रवृत्ति ने इसके पीछे भी आध्यात्मिक चिंतन व ज्ञान को पाया।
अक्सर जब हम आध्यात्म की बात करते है तो लोगों के मानसपटल पर मूर्तिपूजा, सांस्कृतिक प्रथाएँ, बड़े दार्शनिकों के विचार, पौराणिक पारलौकिक कथाएँ, आदि की एक फलक सी दिखती है , इन्हीं विचार-विमर्श ने आध्यात्म को प्रकृति का ही रूप बताया है।
देखा जाए तो हम इस पृथ्वी पर जिस चीज़ का वसन करते है वो सब प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से प्रकृति में ही निहीत है अर्थात मानव जगत खुद में ही एक प्रकृति है जो इसी प्रकृति का ही दूसरा स्वरूप है साथ ही इस धरा के सभी जीव। भारतीय आध्यात्म ज्ञान के बड़े विरासत बौद्ध तथा जैन धर्म मे भी जीवों के साथ उचित व्यवहार की बात की गई है, बड़े ही अच्छे लेखक रोंडा बर्न (Rhonda Byrne) ने अपनी पुस्तक 'द सीक्रेट' में उन्होंने सफलता के लिए आकर्षण के सिद्धान्त को बताया जिसमे उन्होंने मनुष्य के मष्तिष्क को विचार की ऊर्जा का सौरमण्डल के लौकिक ऊर्जा द्वारा संचालित होने की बात कही है।
जैसे-जैसे धुंधले स्मृति की छवि उभरती है तो चीज़े स्पष्ट होती हैं कि आध्यात्म एक वृहद प्राकृतिक हिस्सा है जो प्रकृति से ही संचालित होता है; चूँकि प्रकृति पूर्णतः आध्यात्म से जुड़ी है तथा आध्यात्म हमारे जिज्ञासा से व जिज्ञासा मनुष्य के विकास का कारक है अर्थात मनुष्य का विकास उसके प्रकृति में ही समाहित है, प्रकृति बाहर की और अंदर की दोनों। एक समावेशी नज़रिया से प्रकृति ही आध्यात्म व मनुष्य को परिभाषित करती है।
(ये लेखक के अपने विचार मात्र हैं)

Koi shbd nahi mere pas kuch kaheny ke uttam pryas
जवाब देंहटाएंHave an amazing feeling after getting this thaught. I'm completely agree and new invention is due to coming thaughts in out mind and these thaughts ........
जवाब देंहटाएं