लाला जी बारात में
लाला जी बारात में
संगम
नगरी के यमुना नदी के दक्षिण पश्चिम में स्थित भोले बाबा के इस मंदिर को
मनकामेश्वर के नाम से जाना जाता है, जो जसरा क्षेत्र में लगता है, यहीं पास में ही एक गांव है बवंधर, जो धरा गांव के पास में ही है ।
वर्तमान
के यातायात की सुगमता और सूचना तकनीक ने चीजों की पहुंच को बेहत सहज कर दिया है, इससे पहले लोग शादियों की खोज के बहाने नई नई जगहों को खोज
कर अपने गांव भर में वास्कोडिगामा बने फिरते थे।
बात
लगभग 35 वर्ष पूर्व की होगी जब बवंधर गांव में बारात का स्वागत
होना था, चूँकि गांवों में किसी के घर शादी होती तो पूरे बिरादरी की
जिम्मेदारी हो जाती और गांव के गांव तैयारियों में जुट जाता था, कुछ ऐसा ही दृश्य बवंधर का भी था । किसी भी चीज़ की कोई कमी
न हो इसके लिए काफी दिन पहले से ही वृद्धजन अपनी सजगता दिखाते हुए युवा और किशोरों
की सहायता से देख रेख में लगे थे, उसी का परिणाम है कि किसी चीज़ में त्रुटि मिलती तो वृद्ध लोग
युवाओं को और युवा वृद्धों को कह सुना
लेते और बाद में सारा ठीकरा दुकानदारों पर फोड़ दिया जाता ।
बात बारात के पूर्व संध्या की है जब मीठा बनाने का काम चल रहा था, हलवाइयों के चीनी मंगवाने पर मनोज जब अंदर चीनी लेने गया तो उसके पीछे पीछे कमला चचा भी चले आए , जैसे ही मनोज ने चीनी का बोरा उठाने की कोशिश की कमला चचा ने रोक दिया ।
कमला
चचा - लोगों को मीठा अधिक
नहीं खाना चाहिए मीठे से तरह तरह के रोग होते हैं, मैं नहीं चाहता कि जिस घर से हमारे रिश्ते जुड़ें वहाँ के
लोग बीमार पड़े, ऐसा करो कि इसे थोड़ा
कम कर दो।
करते
करते चचा ने कम ही कर दिया जैसे सच में किसी बीमार को ही खिलाना है ।
मनोज
जब हलवाई के पास चीनी लेकर पहुँचा तो हलवाई ने नज़र की एक घूंट मनोज को और एक चचा
को गटकने के बाद फिर बिना चीनी देखे अपने काम में लग गया, उसने भी मन में सोचा कि मेरा क्या जाता है।
चूँकि
गर्मियों का समय था तो कढाई में तेल की मात्रा हलवाइयों के पसीनों की वजह से बराबर
बनी रहती और तैयारी में तत्पर लोगों को इस बात की खुशी भी रहती ।
कुछ
इसी तरह काफी मशक्कत से व्यवस्था होती रही।
बारात
बहुत दूर से नहीं आनी थी , वहीं
जारी के पास के गांव से आनी थी, जिसके
घर से बारात जानी थी उनके खास रिश्तेदार करमा बाजार के पास छरिबना गांव में थे,
उनका बारात जाना अनिवार्य था ।
लाला
लक्ष्मीकांत करमा के एक विद्यालय में अध्यापक थे, आज सुबह ही वो बेमन से विद्यालय गए थे, विद्यालय में भी उनके मन में वो मटका कोसा का कुर्ता ही नाच
रहा था,
उनका विद्यालय भी बवंधर जाने वाले मार्ग में ही पड़ता था, छरिबना और बवंधर की दूरी कोई 22 किलोमीटर की होगी ।
विद्यालय
के बाद लाला जी ने तुरंत अपने साथियों को तैयार होने को बोल दिया, लाला जी ने बरात वाले कुर्ते के साथ कुछ जरूरी सामान को अलग
चमड़े के बैग में रख लिया और रास्ते के लिए सामान्य सा कपड़ा पहन लिया ताकि कुर्ता
गंदा न हो , साइकिल उठाई और दना
दन पैडल मारना शुरू कर दिया ।
रास्ते
में लाला अपने साथियों से बातें करते हुए जा रहे थे
लाला - कितना ही बार मैंने मना किया तब जा कर माने है साले साहब
नहीं तो वो बस भेजने को तैयार थे , मैने बोला की अब 3 लोगो के लिए क्यों फजीहत करना ।
गोपे – नहीं लक्ष्मी, बात
तो सही है ।
लाला – हाँ बिलकुल, मेरा तो मानना है कि बरात तो साइकिल से ही जाना चाहिए , जब खाली पड़े लौट आओ अपनी सवारी है किसी का इंतजार नहीं
करना पड़ता।
सुधीर - लक्ष्मी भैया 4 बजे ही लौट पड़ेगे हम, गाय को सानी करना रहता है, वादा मत तोड़िएगा ।
रास्ते
में लाला अपना विद्यालय पार करते हुए चपरासी के सलाम का उत्तर दिए और साईकिल की
गति को बढ़ा दिए ।
शाम
होने लगी थी धीरे धीरे अंधेरा हो गया था,
लाला - मुझे एक चोर रास्ता मालूम है, उधर से जल्दी पहुंच चलेंगे और सबसे पहले पचमेल पर हाथ साफ
करेंगे ।
पसीना बह चला था, अंधेरा भी हो रहा था
लाला जी और उनके साथियों ने बनियान पर ही साईकिल हाँकने लगे अब ।
लाला के बताए रास्ते पर उनके साथी उनके पीछे हो लिए, चूँकि लाला जी नेतृत्व कर रहे थे तो उनका आगे चलना लाज़मी था ।
लाला
जी स्नान कर ही रहे थे कि उन्होंने देखा एक लंगोट उनके पास से नहर में बहता चला जा
रहा था । लाला जी ने जब प्रमाणित किया तो पाया ये उन्हीं का है जो ढीला हो कर उनसे
विच्छेद हो चला था ।
लाला
जी बड़े संकट में फसे उनके खास रिश्तेदार के बेटे की शादी न होती तो वो यहीं से
लौट जाते,
उनके साथियों ने उनकी साईकिल और उनके चमड़े के बैग को सही
से संभाल रखा था ।
साथियों
ने लाला जी को निकालने के लिए हाथ आगे बढाया लेकिन लाला जी ने उनका हाथ नहीं पकड़ा, लाला जी बैग से गमछा मांगते रहे और उनके साथी रहस्य में
विस्मित हो रहे थे,
सुधीर - अरे लक्ष्मी भैया पहले बाहर आएंगे तब न गमछा लेंगे, कि पानी में ही गीला करेंगे ।
लाला - (आन बान को बचाते हुए)
गोपे
तुम गमछा दो यार , सब कुछ
इसी हालत में बता दूं? पहले
निकलने तो दो यहाँ से ।
अंत
में हार कर लाला जी ने साथियों से बता ही दिया लेकिन किरिया धरा दी की अगर गांव
में कोई ये बात बताएगा तो फिर कभी किसी भी बारात में वे उनके साथ नहीं जायेंगे और
कोई भी छोटा रास्ता उनको नहीं बतायेंगे ।
होते
करते लाला जी बाहर आए और अब बिना देरी के अपना कोसा का कुर्ता धारण कर लिया और नहर
में गिरने की बात
को दरकिनार करते हुए बोल पड़े कि बड़े ही उचित समय पर अवतार ले लिए, अब तो गांव शुरू ही हो गया है ।
चूँकि
लाला जी खास थे तो उनके लिए बगल में कुर्सी का इंतजाम किया गया, और लाला जी को भी पचमेल का डिब्बा दिया नहीं गया बल्कि थमा
दिया गया ।
एक
क्षण के बाद लाला जी के पीछे से आवाज़ आई, किसी ने उनसे पूछा - " अरे लक्ष्मी
भैया कहाँ रह गए थे ? काफी
पहले के निकले थे"
लाला जी ने सुनते ही झुंझला उठे और पचमेल के डब्बे को नीचे रख दिया , क्षण भर की क्रिया के बाद लाला जी ने उत्तर दिया - "संध्योपासना का समय हो रहा था , तो नहर पर स्नान करने में विलंब हो गया ।
फिर
बगल से किसी ने कहा - "लाला भैया पानी तो पी लीजिए" , तब लाला जी ने अपनी झुंझलाहट को ईश वन्दना का पट दे दिया ।
रात
में दावत के बाद सभी बारातियों ने जनवास में अपनी अपनी जगह जमा ली, गर्मी अधिक होने के कारण लोगों ने अपने कपड़े सिरहाने रख कर
लगभग ऊपर बनियान और नीचे गमछे पर आ गए थे, और जिनकी गिनती पुरुषों में होती वो लोग जांघिए में ही
बेहतर महसूस कर रहे थे । बीच - बीच में कुछ किशोर लड़के जनवास में शरबत ले कर
पहुंच जाते, जिनको सुबह जल्दी
रहती वो सोने का प्रयास करते और जिन्हें पक्के बाराती होने का पुरुषार्थ दिखाना था
वो लोग शरबत की गिलास गिनने की प्रतिस्पर्धा में जुट गए थे और आधी रात तक शरबत में
ही उनको मधुशाला नज़र आती रही ।
तकरीबन
सुबह के 3 बजे होंगे किसी ने आवाज भरी कि मेरे कपड़े गायब हो गए हैं, उसकी आवाज से अगल - बगल के 2 - 4 लोगों की नींद खुल गई , सुधीर भी उठा और देखा कि उसके कपड़े भी नहीं हैं, लाला जी और उनके दोनों साथी के कपड़े नहीं थे, लाला जी का तो चमड़े का बैग भी कोई उड़ा दिया था ।
थोड़ी
देर में निर्णय लिया गया, लाला जी
ने कहा कि यहां मेरी खास रिश्तेदारी है सुबह नंगे होने से बेहतर है यहां से तुरंत
निकल चलो,
गोपे ने भी सुझाव दिया कि जिनके कपड़े बच गए हैं उन्हें ही
लपेट लिया जाए । सुधीर ने दबे पांव सोते हुए लोगों से 3 पजामा उठा लाया, जैसे ही लाला जी ने पजामा में पैर डाल कर नाड़ा कसने लगे
तभी उन्हें पिछे कुछ गीला सा महसूस हुआ, लाला जी धीरे से हाथ पीछे ले गए और छू कर देखा तो वो अजीब
चिपचिपा सा था, उन्होंने उसे सूंघा तो बड़ी तीव्र गंध थी उसमें, उसकी गंध से समझ गए कि ये तो भिगोया हुआ सरसों की खली है जो
पशु को खाने के लिए दी जाती है । न जानें ये शरारत कौन कर गया था । धीरे धीरे उसकी
गंध बढ़ती ही गई और जितनी देर उस पजामे को पहने रहते उनता ही चिपचिपापन पीछे से
लेकर जांघ के आस पास भी महसूस होने लगा था, तीनों ने तुरंत पजामे को वहीं उतार साईकिल के पैडल मारने
शुरू कर दिए ।
रास्ते
में लाला जी ने फिर कहा कि अब कोई भी चोर रास्ता नहीं पकड़ना है, सीधे रास्ते चलेंगे ।
रास्ते
में रेलवे लाईन पड़ी सभी ने देर न करते हुए उसके नीचे से झुक कर साईकिल निकालने
लगे,
साईकिल के साथ जब लाला जी झुके और जल्दी इतनी थी कि पार
होने से पहले ही झुक कर खड़े होने लगे तभी नीचे नट में उनका जांघिया फस गई जिससे वो पीछे से थोड़ा फट गया था ।
जल्दी
का काम शैतान का, लेकिन आज
लाला जी जल्दी में तो थे लेकिन शैतान नहीं, हालात के मारे हुए थे ।
इसके
बाद लाला जी साईकिल की गद्दी पर बैठे फिर न कहीं उतरे और न कहीं रुके । जैसे किसी
लंगोट लेकर भागते भूत का पीछा कर रहे हों ।
लगभग
सवा 4 बजे होंगे, थोड़ा थोड़ा उजाला होने लगा था, तीनों लोग करमा के क्षेत्र में पहुंच चुके थे, सुबह दातून लेकर सड़क पर एक सज्जन ने लाला जी के इस
अकल्पनीय अवतार को देख कर दूर से ही चिल्ला कर बोले - "मास्टर साहब इतनी सुबह
दर्शन दिए वो भी बिना कपड़ो के?
लाला
जी - यमुना स्नान से लौट रहा हूँ , बिना
ईश वंदन अभी कोई बात नहीं कर सकता ।
लाला
जी ने जांघिये को छिपाने के कारण आज नहीं रुके और बिना आशीर्वाद दिए पैडल मारते
रहे ।
👌👌👌👌👌👌👌
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर लेख
जवाब देंहटाएंWah sir Outstanding satire😆naye Parsaiji 🙏
जवाब देंहटाएंGajab sir ji 😄
जवाब देंहटाएं❤️❤️❤️ बहुत अच्छे शब्दों का प्रयोग एवं उत्कृष्ट रचना🙏🏻
जवाब देंहटाएंकाफी मजेदार एवं रोचक रचना है निखिल lots of love brother❤️
जवाब देंहटाएं🙏
हटाएंJordar
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