माघी स्नान

(प्रस्तुत कथा कल्पना पर आधारित है, कृपया इसको व्यक्तिगत ना समझें। समाज में रहने के नाते मैनें भी शब्दों को संतुलित ही रखा है बाकी आप लोग समझदार हैं।)

जीवन में तपस्या ही एक मात्र साधन है लक्ष्य प्राप्ति का, चाहे वो आध्यात्मिक हो, धार्मिक हो या शिक्षा के लिए हो और जहां इनका संगम देखने को मिले वो क्षेत्र प्रयाग संगम है।

शिक्षा के उद्देश्य से शुभम भी स्नातक के साथ प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए अपने क्षेत्र बलिया से दूर प्रयागराज में एक छोटे से कमरे में  सिमट गया, ताकि आगे विस्तार कर सके।

संगम में माघ के स्नान का महत्व क्या है ये किसी को बताने की ज़रूरत नहीं है और शायद इसीलिए शुभम के दूर के दूर के रिश्तेदार भी बिना बताए ही प्रयाग आ पहुँचे, स्टेशन पर उतर कर उन्होंने अपने बड़े से भारी बैग को नीचे न रखने के कारण दोनों पैरों के बीच में ही दबा कर खड़े हो गए, बाएं हाथ के सहारे पैंट से मोबाइल फोन निकाला और दूसरे हाथ से जैकेट खोल कर एक पर्चा निकाला जिसमें एक नंबर लिखा हुआ था।

सुबह के ठीक 4 बज कर 20 मिनट पर शुभम का फोन बजने लगा, अभी थोड़ी ही देर पहले सोया था, जैसे तैसे नज़र जब फोन की  स्क्रीन पर पड़ी तो एक अंजान नंबर से फोन आ रहा था।

शुभम - कौन?

दूसरी तरफ से - बेटा मैं प्रमोद, तुम्हारे पापा के मौसा के मामा का लडका हूँ , प्रयाग आया हूँ।

शुभम - अच्छा!

दूसरी तरफ से - अगर स्टेशन आकर ले लेते बेटा तो बढ़िया रहता, सुबह-सुबह कहाँ भटकूंगा मैं।

शुभम - ठीक है, मैं आ रहा हूँ।

पूरे रास्ते शुभम सुबह-सुबह मन ही मन झल्लाता हुआ गया, बुरा लग रहा था कि आज तो मेरा क्लास भी छूटेगा।

जैसे तैसे शुभम ने प्रमोद चा को लेकर अपने एक छोटे से कमरे में आ गया। जल्दी जल्दी से पीने के लिए पानी गरम किया और एक गुड़ का लड्डू दिया।

चचा थोड़ी ही देर में तैयार हो गए माघ क्षेत्र के लिए, मजबूरन शुभम को भी साथ ही जाना था । मन मसोट कर शुभम भी तैयार हुआ। उन दिनों जिले में भीषण ठंड का कहर बरप रहा था। प्रवाहमान नदियाँ द्योतक हैं उन क्षणों की जिसमें समय की निरंतरता विस्मृत हो जाती है। संगम का नज़ारा और बहता पानी को देख प्रमोद चा उत्साह से भर गए, फट कपड़े फेंक कर कूद गए पानी में, प्रमोद चा के बहुत आग्रह करने पर शुभम को भी न चाहते हुए पानी में जाना पड़ा। उधर प्रमोद चा डुबकी पर डुबकी गिने जा रहे थे और इधर शुभम को था कि कितनी जल्दी यहां से निकले।

स्नान-ध्यान के बाद शुभम को लगा कि अब तो वापसी होगी लेकिन प्रमोद चा के बातों ने फिर उसे भावुक कर दिया, उसे भी लगा की ठीक ही है कहां रोज़ आ रहे हैं , मन है तो घूम लें थोड़ा। करते-करते शाम हो गई, अब शुभम बुरी तरह थक चुका था वो बीती रात सोया भी नहीं था। अंधेरा हो गया था, गलन बढ़ गई थी । इसलिए दोनों वापस हो रहे थे।

प्रमोद चा यहां एक दुकान वाले को गाजर के हलवे में चीनी और मेवे का अनुपात समझाने में लगे थे और जब बात नहीं बनी तो बोल दिए कि "तू लोग का जानबे". तब तक शुभम सड़क के दूसरी तरफ से भुने हुए चने, मटर, नमकीन आदि खरीद रहा था। शुभम बेखबर था कि जहां से उसने ये चबैना बनवाया उसके ठीक पीछे मदिरा की दुकान थी, ठेले वाले अगर वहां ठेले लगा रहे हैं तो इसमें किसी की क्या गलती लेकिन प्रमोद चा ने खुलकर बोले बिना डांटा और चेतावनी दी।

शुभम को क्या पता की प्रमोद चा रुकेंगे आज, झल्लाहट में उसने खिचड़ी बनाने का निश्चय किया, उधर प्रमोद चा शुभम को प्रेसर में डाल कर अपने प्रेसर के लिए मसक्कत कर रहे थे। शुभम को डर था कि कहीं चचा ने पापा से दुकान वाली बात कह तो नहीं दी, मां को फोन लगा कर शुभम ने स्थिति को जानने की कोशिश की तो पता चला कि स्थिति इतनी ठीक है कि किसी को पता भी नहीं की कोई प्रमोद चा शुभम के पास गए हैं।

शुभम ने विवरण दिया तो माँ ने बताया -

माँ - हाँ, सुनील की शादी में तुम्हारे पापा मिलवाए थे मुझे।

शुभम - अच्छा अच्छा

माँ - अरे याद है शादी में पिंकी जिससे मिले थे , उसी के पापा का नाम है

शुभम - ठीक है माँ, आराम कीजिए।

फोन कट गया। शुभम को आत्मग्लानि महसूस होने लगी अब उसे लगने लगा कि एक भक्त आदमी के बारे में गलत सोच कर उसने पाप किया है, अब उसे लग रहा है की प्रमोद चा को 4-6 डुबकी और लगवा लाऊं। अफसोस के साथ शुभम सोचा कि मुझे खिचड़ी नहीं बनानी चाहिए थी, कल को जब घर जायेंगे तो चर्चा करेंगे कि मुझे वहां खिचड़ी मिली थी , पिंकी भी सुनेगी तो बुरा लगेगा उसे।

लेकिन खाना बन चुका था, दूसरा कोई उपाय न था तो इसलिए खिचड़ी की तारीफें की गई और स्वास्थ्य के लिए उत्तम बताया गया। सोने के लिए शुभम ने प्रमोद चा को आदर से बिस्तर पर जगह दी और खुद नीचे व्यवस्था कर लिया।

सुबह हुई तो शुभम ने सोचा कि मटर पनीर खिला कर ही भेजूंगा प्रमोद चा को, मन ही मन सोच रहा था कि अगर थोड़ी देर रुक कर जाते तो मुझे भी वक्त मिल जाता अपनी प्रतिभा को प्रदर्शित करने का।

स्नानघर से निकलते ही चचा ने बताया कि आज खिचड़ी ही बना लेना, कल पानी बहुत ठण्डा था तबीयत ठीक नहीं लग रही है। शुभम के अरमानों पर पानी फिर गया, उसने सोचा कि कोई बात नहीं इस मुश्किल समय में वो प्रमोद चा का ख्याल रखेगा। शुभम ने वैसा ही किया चचा की खूब खातिर की।

शाम की गाड़ी से चचा की वापसी थी आज, अपने पर्स में से टिकट निकाल कर समय की पुष्टि कर ही रहे थे कि उनकी नज़र उस पर्चे पर गई जहां शुभम का फोन नंबर लिखा था, उन्होंने देखा की उनसे एक अंक का हेर फेर हो गया था और फोन यहां लग गया। चुपके से उस पर्चे को पर्स में डाल कर चचा ने सामान पैक करना शुरू किया।

शुभम - अगर एक-आध दिन रुक जाते तो मुझे भी अच्छा लगता, अपनापन सा लगता है जब कोई अपना आता है तो।

प्रमोद चा - अरे नहीं बेटा घर पर भी जिम्मेदारी है और तुम्हारी पढ़ाई का नुकसान अब नहीं करवाना है।

शुभम - अरे इसमें परेशानी की कोई बात नहीं है.....

प्रमोद चा - अभी मैं मजबूर हूं जाने दो, फिर आऊंगा तो शहर भी घूमूंगा।

शुभम - ठीक है , इंतजार रहेगा आपका।

दोनों स्टेशन की तरफ जा रहे थे , रास्ते में ही शुभम की माँ ने फोन कर के सूचना दी कि "बेटा वो प्रमोद चाचा तुम्हारे तो 2 साल से नागपुर में हैं" शुभम ने "ठीक है" कह कर फोन को रख दिया। शुभम को अनुभूत हो रहा था जैसे वो प्रमोद को नहीं अपने उत्साह और जोश को कहीं छोड़ने जा रहा हो। बहरहाल किसी ने किसी से कुछ कहा नहीं, दोनों स्टेशन पर पहुँच गए।

शुभम का चेहरा लटका हुआ था कि ये "उसके" पापा नहीं है और उधर प्रमोद को लगा कि लड़का कितना संवेदनशील और जज़्बाती है, अपने प्रमोद चा से कितना लगाव होगा उसे।

प्रमोद चा ने पीछे से हाथ उठाकर आवाज़ देकर शुभम को बुलाया और जेब से एक अच्छी नोट निकाल कर उसके जेब में डाल दी। शुभम भी भावुक हो कर उनका सामान उठा कर उनकी सीट पर बैठा कर ही लौटा।

वापस आते समय शुभम ने उन्हीं पैसों से मटर पनीर खरीदा और इन खट्टी मीठी भाव भंगिमा में उसे पका दिया।

आप लोगों को भी अगर माघी स्नान करना है तो नीचे कमेंट कर के शुभम का नंबर प्राप्त कर सकते हैं।😄

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