शराब का नशा ही कुछ अजीब है

शराब का नशा ही कुछ अजीब है
पहले शराब को पीने का नशा ,
फिर शराब को पीने के बाद वाला नशा
पीने के पहले भी पीना ही समझ आता है
और पीने के बाद भी पिया ही समझ आता है
बाद का नशा तो लाज़मी है
लेकिन पहले का नशा ज्यादा चढ़ जाता है
पिने को कुछ चाहिए ,
इस चक्कर मे कभी कभी पेट्रोल से प्यास बुझ जाता है
दोनों ही मंहगे है, फर्क कहाँ समझ आता है
विशेष समझ भाव बढ़ जाता है
कल शाम वाली कफ सिरप थी या पेट्रोल
ये भी स्वास्थय के उतरने , चढ़ने पर समझ आता है
ना paytm का कैशबैक , ना स्वाइप करने पर डिस्काउंट
नशा ही इनको ठग ले जाता है
कितने मासूम थे वे  , जिनको कोई भटका नहीं पाता था
घर से ठेका , ठेके से घर , रास्ता भी खुद ही पाता था
हरिवंश जी की मधुशाला कुजता जाता था
भाव तो क्या , अर्थ भी नहीं समझ पाता था
क्योंकि, शराब का नशा ही कुछ अजीब है
इश्क के इजहार से लेकर राष्ट्रपति तक बन जाता था
निश्चेष्ट से बात, और जानवरों से लिपट जाता था
खड़े खड़े ही पाकिस्तान से लड़ जाता था
माना शराब स्वास्थ्य को अपकारी है
लेकिन पीने वाले को कहाँ समझ आता है
उसकी क्या दशा होगी जो
इसे जीवनाधार समझ जाता है
क्योकि , शराब का नशा ही कुछ अजीब है





















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