संदेश

शर्मा जी की कार

शर्मा जी लाए एक नई कार झट लगा दिए निज द्वार देख वर्मा जी थे गरमाए थे आए जो कुछ हिस्से उनके द्वार मन ही मन स्नेह जताया अ दिलो दिमाग जब भर आया तब रौद्र स्वर में चिल्लाया दो (2) इंच मात्र कम है इसमें तुम्हे न जाने क्या गम है अच्छे से जब नापा-तोला तब कहीं ये शर्मा ने बोला फिर तो ऐसा बना नज़रा था मानो इंफिनिटी वॉर (infinity war )  हो रहा दोबारा था अरे हद तो तब हो गई जब दोनों के साथ घरवाली का सहारा था लेकिन बात यहीं थमी नहीं जा याचिका तक दर्ज कराई न्याय की ऊपर तक गुहार लगाई बरी कराना था वो दो (2) इंच मिठाई थी इसी वश खिलाई बड़ी बड़ी जान-पहचान  बताई थी लेकिन महीनों फाइल ऊपर न आई थी निकाल न्योछावर और भेट दिए क्योंकि रिवाज पूरी न निभाई थी सफल रिवाजों का ही परिणाम था जो लग गया तारीखों का अंबार था पैर की गर्मी दिमाग को जब चढ़ गई तब कहीं बात घर कर गई कार मात्र ही खड़ी की है किसी नाम रजिस्ट्री थोड़े हो गई परन्तु हो गई थी काफी देर जज भी सन्न , सुन ये कुरान बुला लिया गया कम्पनी का सुलेमान कहा इसमें न मेरी कोई खता है डिज़ाइनर मात्र का दोष है ये जिम्...

स्वतंत्रता दिवस : एकदिवसीय उत्साह

हर सुबह की तरह आज भी ठीक 4:30 बजे के आस-पास नींद खुल गई, शायद मौसम की वजह से तबियत थोड़ी भारी सी लग रही थी खैर, मैं बिस्तर से उठ कर छत की तरफ जाने लगा , छत पर वो शीतल हवाएँ इस तरह मुझे स्पर्श कर के गुजरती मानो मेरे जिंदगी से कुछ पल के लिए सारी मुसीबत और परेशानी को अपने साथ ले कर जा रही हो , और जब ताज़ी हवा मेरे सांसो में घुल कर अंदर जाती तो मानो हृदय मुस्कुरा उठता दिल से एक ही बात निकलती- कितनी अच्छी ज़मी पर जन्म लिया मै , मन में शांति और सुकून की एक लहर दौड़ पड़ी , ये सब चीज़े कहीं न कहीं मेरा बचपना मुझे याद दिला ही देते है , परन्तु समय से बंधे होने के कारण मैं झट नीचे उतरा और आज दोबारा बिस्तर पर न पड़ने के बजाए अपने मेज से सटे कुर्सी पर बैठ गया और मेज पर रखी एक पत्रिका के पन्नो को पलटने लगा, कुछ ही देर हुए होंगे कि सूरज ने अपनी सकारात्मक ऊर्जा के साथ मेरी खिड़की पर दस्तक दी और झांकते हुए मेज तक पहुँच गया और अलार्म की तरह कुछ याद दिलाया ,नाश्ता करने के बाद कुछ सामान लेने राशन की दुकान के लिए निकल पड़ा , आज चीज़े ही मात्र कुछ बदली-बदली नज़र आ रही थी, कपड़े स्त्री करने वाले बुजुर्ग दादा जी ने अपनी...

...वहम सब दूर हुए

उम्मीद एक बार फिर जगी की शायद वो तलाश खत्म हुए जिस कंधे पर सुना सकूँ अपनी थकां आँख खुलते वहम सब दूर हुए मैं दोष उनको देता नहीं क्योंकि इस खेल के वो संचालक नहीं गलती तो मेरी ही छिपी कहीं जो पथ से हम है भटके हुए फिर...आँख खुलते वहम सब दूर हुए इसमें भी दुआ आपकी जो अभी तक सार्थक बने हुए अन्यथा नहीं कोई झेल सका सच करीब से है जो देखे हुए फिर...आँख खुलते वहम सब दूर हुए इस करुणा कलित हृदय की आवाज मात्र ये एक है साक्षात देवता(माता-पिता) मात्र ही सच है निखिल जग अब मिथ्या हुए फिर...आँख खुलते वहम सब दूर हुए

वीडियो कॉलिंग के बाद अगले कदम की उम्मीद

जहाँ महीनों लग जाते थे लोगो को अपने पत्र के जवाब पाने में , आज वीडियो कॉलिंग के माध्यम से पल भर में न सिर्फ वार्ता वरन् एक दूसरे को देख भी लेते है । ये तकनीक का कमाल नहीं तो और क्या है? जब-जब विज्ञान अपनी परीक्षण करता है तब-तब कुछ नया व रोचक जानने को मिलता है फिर वो चाहे अपने आकाश , पृथ्वी , अन्य ग्रह या तकनीक का ही क्षेत्र क्यों न हो ।               जिस तरह विज्ञान ने मंगल के लिए अपनी ताकत लगा दी उसी तरह तकनीक के क्षेत्र में भी वो कहीं आगे निकल चुका है , हाल ही में बंगलोर (भारत) के tone tag कम्पनी ने tone tag तकनीक को लॉन्च किया । विज्ञान की इस प्रगति को देखते हुए लगता है कि वो दिन भी दूर नहीं जब एक दूसरे को देखते हुए बात करते समय दूसरे तरफ की स्मेल भी महसूस हो।                      इस क्षेत्र में विज्ञान के परियोजनाओं के बारे में बहुत कुछ नहीं मालूम परंतु मेरे अपने विचार ये बताते है कि शायद इस तकनीक को लाने के लिए पहले दुनिया भर के समेल्स के सैंपल को एकत्रित किया जाएगा तथा उसको डाटा के रूप में...

जब तुम माँ को समझ पाओगे.....

न कुछ सोच पाओगे न कुछ बोल पाओगे ये कलम भी दम तोड़ देगी जब तुम माँ को समझ पाओगे दुनिया के सारे सुख छोड़ आओगे भागते हुए सीधे माँ के पास आओगे और पैसे का कोई मोल नहीं, ये भी तुम समझ जाओगे जब तुम माँ को समझ पाओगे सारी थकान मिट जाएगी जिस शाम माँ की गोद मे लेट जाओगे रेस्टूरेंट का स्वाद भी याद न आएगा जब निवाला तुम माँ के हाथ का खाओगे जब तुम माँ को समझ पाओगे सारी मुसीबत धूल के कण नज़र आएगी जब जब माँ को ध्यान में लाओगे सात समन्दर की गहराई नाप लोगे लेकिन माँ की ममता न भाँप पाओगे जब तुम माँ को समझ जाओगे।

एक तरफा शिक्षा

तब अभिलाष कि उम्र महज 5 वर्ष की ही थी, उसके पिता (रंगलाल ) गाँव मे अधिया के खेती से अपना व अपने परिवार का भरण- पोषण करते थे, लेकिन घर की ज़रूरत और बच्चे की उम्र दोनों ही सरपत की तरह बढ़ती जा रही थी , कारण भी यही था कि रंगलाल अब शहर आकर ऑटो-रिक्शा चलाने लगा।              शहर में दूसरे बच्चों को देख रंगलाल के मन में भी अपने अभिलाष को वो सारी सुख सुविधा दे सके और उसे अच्छे से पढा-लिखा कर कुछ बनाने के सपने को और मजबूती मिलने लगी , खैर ये कोई नई बात नहीं है किसी भी पिता के लिए। कुछ दिन बात रंगलाल अपने गाँव की छोटी सी जमीन को भी बेच दिया और अपने परिवार को शहर लेकर कर आया और समाज के दूसरे वर्ग की भाँति shanty town में रहने लगा । रंगलाल ऑटो चलाता , उसकी पत्नी (साधना) लोगों के घरों में बर्तन धुलने तथा अभिलाष चौराहे पर खड़ी गाड़ियों के शीशे साफ करने का काम करते जिसके फलस्वरूप कुछ पैसे इक्कठा होते जिसे ये जमा कर करते। रोज़-रोज़ सड़क पर अभिलाष अपने उम्र के बच्चों को अच्छे-अच्छे कपड़ो में, रंग-बिरंगे बैग , पॉलिश किये हुए चमकते जूते और हाथ मे पानी की बोतल लेकर स्कूल जात...

आखिर मैं क्या लिखूँ ?

धरा के मेहनती हृदय में पेड़ की शीतल छाँव में बैठा कुछ सोच रहा था आखिर मैं क्या लिखूँ ? मांग रहे  जो सबूत शहीदों के बलिदानों की कर रहे जो जाँच अन्नदाता के मौत की सोच रहा उनके बारे में आखिर मैं क्या लिखूँ ? कतिपय कतराते जो देना गरीब को दान देना होटलों में टिप मानते  वो अपनी शान सोच रहा उनके बारे में आखिर मैं क्या लिखूँ ? तरस रहे जो नैन रोटी को हालत उनकी है संगीन फेक देते अन्न खुसी से वो लोग जिनकी थाली है रंगीन सोच रहा उनके बारे में आखिर मैं क्या लिखूँ ? करते जब धार्मिक हिंसा शर्मसार तब होती मानवता करते जो छल आपस मे दूषित उनकी है मानसिकता सोच रहा उनके बारे में आखिर मैं क्या लिखूँ ? दबे हुए लगाते वो अपने मेहनत की बोली लूट लेते है वो लोग जिनकी खाकी है झोली सोच रहा उनके बारे में आखिर मैं क्या लिखूँ ?   कुछ, सोच रहे धरा को आखिर कैसे सींच दूँ ?