आखिर मैं क्या लिखूँ ?
धरा के मेहनती हृदय में
पेड़ की शीतल छाँव में
बैठा कुछ सोच रहा था
आखिर मैं क्या लिखूँ ?
मांग रहे जो सबूत
शहीदों के बलिदानों की
कर रहे जो जाँच
अन्नदाता के मौत की
सोच रहा उनके बारे में
आखिर मैं क्या लिखूँ ?
कतिपय कतराते जो
देना गरीब को दान
देना होटलों में टिप
मानते वो अपनी शान
सोच रहा उनके बारे में
आखिर मैं क्या लिखूँ ?
तरस रहे जो नैन रोटी को
हालत उनकी है संगीन
फेक देते अन्न खुसी से वो लोग
जिनकी थाली है रंगीन
सोच रहा उनके बारे में
आखिर मैं क्या लिखूँ ?
करते जब धार्मिक हिंसा
शर्मसार तब होती मानवता
करते जो छल आपस मे
दूषित उनकी है मानसिकता
सोच रहा उनके बारे में
आखिर मैं क्या लिखूँ ?
दबे हुए लगाते वो
अपने मेहनत की बोली
लूट लेते है वो लोग
जिनकी खाकी है झोली
सोच रहा उनके बारे में
आखिर मैं क्या लिखूँ ?
कुछ, सोच रहे धरा को
आखिर कैसे सींच दूँ ?
Great
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