संदेश

सन्तुलन

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कुछ ख्वाबों के मर जाने से जीवन नहीं मरा करता, ख्वाब हमारी ख्वाहिशों से संबंध हैं; ख्वाहिशें लक्ष्य की यात्रा के पड़ाव अथवा दीर्घ विराम बन जाते हैं, जब हम गलत दिशा में भटके रहते हैं तो वो अपूर्ण पड़ाव (ख्वाब) हमें टूटे नज़र आते हैं, लेकिन वो कहीं न कहीं हमारे बेहतरी के लिए होते हैं ; कभी-कभी इसका क्षणिक आभास होता है और कभी-कभी उसी क्षणिक निराशा को हम दीर्घ बना कर समय नष्ट करते हैं। जीवन के यथार्थ से प्रताड़ित हर विफल व्यक्ति सतही ग्रंथों से धारणाएं बना लेता है, वो व्यक्ति जो इन निराधार धारणाओं से सहमत न हो उन्हें वो नादान और भौतिकवादी प्रतीत होता है और यह कदापि उचित नहीं है, क्षणिक अथवा त्वरित धारणा आपके विवेक को अवरुद्ध करती ही हैं साथ ही पुनः प्रयास की शक्ति को दुर्बल करती हैं, परंतु किन्हीं परिस्थितियों में सही उठते कदम पर भी डर का घना मेघ छाया रहता है तो ऐसे में उसकी तुलना लक्ष्य से कर वर्तमान के असमंजस पर भी पर विजय प्राप्त किया जा सकता है।

जीवन का अंतिम शर्त ?

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विचारों की जीत का जश्न मनाऊं   या बिखरे तिनके को मज़ाक से बचाऊं  खुद को विश्लेषित कर  सातत्य प्रवास को जाऊ  क्षण- क्षण जो ये त्याग है   शर्त ये अंतिम जीवन का है  अश्रुओं में धूमिल हो जाऊं  या विस्मृत सब कुछ कर जाऊं  दरकिनार कर, खुद को सिंचित कर  विषम सारे डगर जीत जाऊं  अकेला सफर ये तय करना है  शर्त ये अंतिम जीवन का है

परिमार्जन

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मैं कोई रचनाकार नहीं हूँ नित नए कटु अनुभवों को   शब्दों का मरहम लगाता हूँ   बदस्तूर जीवन संघर्षों को  स्याही से अनुस्यूत करता हूँ  दुर्निवार के पर्यवसान को   सातत्य मार्जन प्रयास करता हूँ   परिवर्तन के प्रबल विश्वास को   सकारात्मकता सः सिक्त करता हूँ   प्रचंड प्रषयन है संवृद्धि को  इसलिए चुनौतियों के बरक्स   अर्वाचीन उन्नयन होता हूँ

लघुकथा #02

चुनावी परिणाम प्रमुख जी के पक्ष में नहीं था, लेकिन प्रमुख जी को नेतृत्व करने का अधिकार जन्म से मिला था। एक दिन प्रमुख जी के मन में आया कि क्यों ना कुत्तों से वोटिंग कराई जाए, क्योंकि समाज में सिर्फ इंसान ही तो रहते नहीं। लेकिन दस्तावेजधारक ने उनसे बोला - "सर कुत्तो की जात कैसे पहचान होगी? कुत्ते सिर्फ रोटी के लिए लड़ते हैं"

कुमायूँ

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तरदीद – कथावस्तु, कथानक, पात्र, सभी काल्पनिक हैं, वास्तविकता से इसका कोई सरोकार नहीं है। पूरे 4 घण्टे की देरी के साथ अपने समय से आखिरकार गाड़ी मंजिल पर पहुँच ही गई, प्रशांत ने स्टेशन पर उतर कर नज़र को ऊंचा कर चाय की तलाश की,  और उसी ओर बढ़ने लगा, हल्की लाल चेकदार शर्ट, क्रीम कलर की पैंट, एक सफेद जूता, पीठ पर बैग , चेहरे पर द्वैत भाव जिसमे नौकरी की खुशी और घर से दूर होने का दर्द दोनों ही स्पष्ट था। ज्वाइन करने के बाद प्रशांत ने तुरन्त अपने क्षेत्र को कूच किया, कुमायूँ की वादियाँ उसे बेहद रोमांचित कर रहीं थी, इस रोमांच में पता ही नहीं चला कि कब वो अपने जंगल में आ पहुंचा। लोगों से सुन रखा था कि वन दरोगा का मतलब 'काम नहीं दाम सही', लेकिन उसने निश्चय किया था कि वो किसी भी भ्रष्टाचार में लिप्त नहीं होगा। अगले ही दिन सुबह-सुबह प्रशांत से मिलने माथुर जी आ पहुँचे, उम्र वही तकरीबन 45-50 और पेट को नियंत्रण में रखा हुआ था, चाल में फुर्ती , गोल गोल लबलबाती आंखे और चेहरे पर छोटी सी मुस्कान , मन में गाना गुनगुनाते अंदर घुसे चले आ रहे थे, सब खड़े हो हए , प्रशांत ने भी सलूट किया। प्रशांत- जय...

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  मुझे गर्व है- विश्व की सबसे पुरानी सभ्यता भारत में रही जो अपने काल परिधि में चरम तक पहुँच कर क्रमानुसार काल मे समाहित हो गई. लेकिन कोई भी सभ्यता शीघ्र ही फलित नहीं होती , उसके बनने में मनुष्य का विवेक , आकांक्षा, व उसकी कल्पना शक्ति का मिश्रण होता है. अपनी इन्हीं शक्तियों के इस्तेमाल के लिये उसे मेहनत रूपी ईंधन की आवश्यकता पड़ती है, जब कोई भी मनुष्य अपने अथक प्रयास व श्रम के माध्यम से अपने व्यक्तित्व व ज्ञान (कोई भी उपलब्धि) को अर्जित करने का प्रयास करता है तो उसको अनेक तरह की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. ये अवरोध उसी प्रकार है जिस प्रकार इन अवरोधों में भी हमको मित्र, परिवार, समाज से सहायता प्राप्त होती रहती है , यही छोटी छोटी मदद कभी कभी रिक्तियों को भरने का कार्य करती हैं.  अगर गणितीय चेत से समझा जाए तो ये तमाम अवरोध उन तमाम छोटे सहायताओं के सामने नगण्य प्रतीत होते हैं.  महत्वपूर्ण यह नहीं है कि ये अवरोध नगण्य है , महत्वपूर्ण यह कि अंततः जब जीत का स्वाद मिले तो उसमें पान की तरह परिपक्वता की  लालिमा चमकती रहनी चाहिए.  मेरे ऐसे सुलझे व जिद्दी मित्रों पर...

ज़िन्दगी : एक पहिया (भाग 1)

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  (चरित्र , कथानक आदि सब काल्पनिक है , किसी व्यक्ति विशेष से सम्बंध संयोग मात्र हैं) फोन खोलेते ढेरों नोटिफिकेशन में एक कमाल की खबर मिली, लम्बे इंतेज़ार के बाद भारतीय रेलवे ने बाकी ट्रेनों को भी हरी झंडी दिखाने का निर्णय लिया, इस निर्णय से भारत के पहिये को फिर गति पकड़ने की उम्मीद मिली। भारतीय रेलवे भारत की अर्थव्यवस्था का बहुत बड़ा हिस्सा है जिससे भारत का हर वर्ग लाभान्वित है इसके दूसरे पक्ष की बात की जाए तो बच्चों से लेकर बूढ़ों तक इसकी यात्रा का स्वाद मानसपटल पर चिरकाल संजोया है और कुछ लोगो के लिए ये यादे जीवन का आधार बन जाती है...       खबर अभी खत्म नहीं हुआ था कि नीलेश ने अपना फोन रख कर किचन की तरफ चल दिया क्योंकि उसे देर हो रही थी, नीलेश IT company में सेल्स विभाग में था, जिस वजह से उसे सर्वे और रिपोर्ट के चक्कर मे अक्सर यात्रा करनी पड़ती थी , " आए दिन की यात्रा से जीवन पहिये  जैसा गोल-गोल घूमने लगा है " हालाँकि अब उसका प्रमोशन हो चुका है , इन यात्राओं की उसको ज़रुरत नहीं। नौकरी लग जाना उसके ऊपर समय से तो फिर बात ही क्या है भारत के मध्य वर्ग मे न...