जीवन का अंतिम शर्त ?


विचारों की जीत का जश्न मनाऊं 
 या बिखरे तिनके को मज़ाक से बचाऊं
 खुद को विश्लेषित कर
 सातत्य प्रवास को जाऊ
 क्षण- क्षण जो ये त्याग है 
 शर्त ये अंतिम जीवन का है

 अश्रुओं में धूमिल हो जाऊं
 या विस्मृत सब कुछ कर जाऊं
 दरकिनार कर, खुद को सिंचित कर
 विषम सारे डगर जीत जाऊं
 अकेला सफर ये तय करना है
 शर्त ये अंतिम जीवन का है

टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

अंत में......

भाषा के तकनीकिकरण में सांस्कृतिक चुनौतियाँ

प्रकृति से आध्यात्म