आत्महत्या : (भाग - 2)
विवेक ने देखा कि वो उस पुल के ऊपर है लेकिन न तो बैठा है और न ही वो खड़ा है , विवेक हैरान तो तब हुआ जब उसने नीचे देखा कि पानी में किसी की लाश तैर रही है उसके हाथ पाव फूल गए क्योंकि उस लाश के कपड़े, कद – काठी , गढ़न वही था जो विवेक का था । विवेक को समझने में देर न लगी कि अब वो जीवित नहीं है, उसे बहुत धक्का सा लगा और विलाप में उसके आँसू बहने लगे उसके अंदर जीने की चाह अपने चरम पर पहुँच रही थी, उसे कुछ सूझ ही नहीं रहा था कि अब क्या करूँ ? कहाँ जाऊँ ?
विवेक को अपने परिजन के पास जाने की इच्छा होने लगी , बार - बार उन्हीं को याद करता और सोचता कि बस एक बार मिल लेता तो अच्छा रहता , विचार करते हुए उसने गर्दन को शून्य की तरफ उठाया ही था कि उसने देखा दो चमकदार चीजें उसके पास चली आ रही थी उनकी गति इतनी तीव्र थी कि विवेक के पलक झपकते ही वो आकाश से विवेक के पास तक पहुँच गयी, विवेक ने देखा ये तो 2 लोग हैं, विवेक के पूछने पर उन्होंने अपना परिचय दिया, उनके परिचय से विवेक ने अपनी जिज्ञासा सुलझाने के लिए उनसे प्रश्न करता है –
विवेक – आप दोनों ही यम के दूत हैं , तो क्या आप लोग मुझे ले जाने आए हैं ?
दूत 1 – नहीं , हम तुम्हें ले जाने नहीं आए हैं, हम दोनों संदेश देने आए हैं बस ।
विवेक – (विवेक ने सोचा कि शायद मेरी जान बक्श दी गई है, उसने तुरंत फिर प्रश्न किया)
क्या संदेश है ?
दूत 1 – प्रेत योनि के कुछ नियम और शर्तें होती हैं, उसी की चर्चा करने आएं हैं ।
विवेक – प्रेत योनि ? इसका क्या तात्पर्य, मुझे प्रेत योनि से क्या अभिप्राय .....
दूत 2 – क्योंकि तुम्हारी आयु अभी समाप्त नहीं हुई थी, तुम अकाल ही मृत्यु के मुख में कूद पड़े हो इसलिए अभी पृथ्वी पर ही तुम्हें प्रेत योनि में ही भटकना पड़ेगा जब तक कि तुम्हारी आयु पूर्ण नहीं हो जाती ।
विवेक – ये सब सुन कर विवेक पर दुखों के मेघ बरसने लगे । “परंतु मेरी मृत्यु कैसे हुई?
दूत 1 – नीचे जो लाश दिख रही है वो तुम्हीं हो , इसी नदी में डूब के मर गए उसके पश्चात तुम्हारा यह शरीर तैरने लगा, तुमने आत्महत्या की है ।
विवेक – नहीं नहीं , मैंने कोई आत्महत्या नहीं की, मैं तो बस यहाँ बैठ गया था, हाँ मुझे कई बार विचार तो आया लेकिन मैंने अपने विचारों पर नियंत्रण पा लिया था, .....शायद मुझे यही भोग बदा था ।
दूत 2 – भूल कर रहे हो जीव तुम, मृत्यु का ख्याल मात्र भी मृत्यु के समान होता है ।
विवेक – कर्म फल के अनुसार कर्ता को फल मिलना चाहिए और मेरी मौत के कर्ता भी तो ईश्वर ही हुए तो फिर ये भोग मुझे क्यों ? आखिर सारे जीव को ही क्यों ?
दूत 2 – इस तरह से तो तुम कर्म को झुठलाने का प्रयास कर रहे हो, ये मत भूलो कि तुम भी उसी कर्ता के अंश हो, तुम्हारे पास भी वही सोचने समझने की शक्ति है, सारा मनुष्य जाति उस परम का अंश है सबके अंदर अच्छे से अच्छा और बुरे से बुरा करने की अपार क्षमता होती है, लेकिन मिलेगा वही है जो कर्म वो करेगा।
इसके बाद विवेक कुछ बोल न सका, विवेक ने खुद को दृढ़ करते हुए अपनी स्थिति को स्वीकार लिया । दूत भी अपनी चर्चा समाप्त कर लौटने को हुए और जाते - जाते विवेक से उसकी कोई इच्छा प्रकट करने को कहा तो विवेक ने उन्हें सोच कर बताने को कह दिया ।
थोड़ी ही देर में उजाला होने वाला था, भोर में ही एक नाविक ने लाश को नदी से खींच लिया, किनारे लाने पर उसके एक साथी ने उसको सुझाव दिया कि इसकी खोपड़ी किसी अघोरी को दे देते हैं और बाकी शरीर के अंग से काफी पैसे मिल जाएंगे । हर किनारे पर किसी न किसी अघोरी का क्षेत्र तय होता है इसलिए उनका हिस्सा तय रहता था ।
यह सब दृश्य देख कर विवेक को अपनी शरीर से मोह होने लगा इनकी बाते सुन कर उसे ऐसा लग रहा था कि आज वो जीवित होता तो उसको बड़े जतन से सवाँरता, तुरंत विवेक ने याद किया कि मैंने खुद भी तो कितना अन्याय किया है इस शरीर के साथ, जिस शरीर ने इस संसार में मेरी पहचान बनाई, जो मेरे लिए इस संसार का माध्यम बना मैंने हमेशा उसे दुर्व्यसन में लिप्त रखा, नकारात्मक विचार से उसके लिए अंदर ही अंदर विष पैदा किया है ।
उन्हीं नाविकों में से एक बुजुर्ग ने समझाया कि नहीं, इसे कोई हाथ न लगाए ये आत्महत्या या हत्या जान पड़ता है , इसमें जरूर पुलिस केस होगा इसमें उलझना महँगा पड़ जाएगा । सबकी सहमति होने पर लाश को पुलिस को सौप दिया गया ।
उधर विवेक के घर वाले परेशान हो रहे थे, क्योंकि ऐसा कभी हुआ नहीं था कि विवेक घर ही वापस न आए भले ही कितनी रात हो जाए, अगर कभी बाहर जाना भी हो तो बता देता था । दिनेश ने शांति को बहुत समझाया लेकिन शांति की हालत देख दिनेश ने उन्हें आश्वासन दिया कि मैं पुलिस को सूचित कर के आता हूँ और चला गया । एक वृद्ध पिता जब अपने जवान बेटे को ढूँढने के लिए घर से निकले तो उसकी स्थिति कुछ ऐसी हो जाती है जैसे आज विवेक का जीव अपनी शरीर को चाहता हुआ तड़प रहा है ।
थाने में सूचना देने के बाद दिनेश घर लौट कर अपने कमरे में जा कर सुध - बुध हार कर लेट गया । शांति और विनीता ने अपने तमाम रिश्तेदारों से संपर्क कर के विवेक के बारे में पूछा, दोनों ने तिल भर भी कसर न छोड़ी ।
दूसरे पहर के आस – पास थाने से फोन आया कि एक लाश की पहचान करवानी है दिनेश ने पहचान की । पुलिस ने लाश दिनेश को सौपने से पहले बताया की पुलिस विभाग ने कितनी मेहनत की इस लाश को खोजने में , अपना मेहनताना लेकर पुलिस ने लाश को दिनेश को सुपुर्द कर दिया ।
पूरे घर में मातम छाया था शांति की स्थिति किसी पार्थिव से कम न थी, दिनेश की हालत भी कुछ ऐसी ही थी लेकिन घर के प्रधान होने के साथ - साथ आगे उन्हें ही सब देखना था इसी सोच में खुद को जिंदा रखे हुए थे । विनीता कुछ सोच ही न सकी, वो खुद को इन सब से अलग रखना चाहती थी क्योंकि उसकी जिंदगी में रोज धीरे – धीरे खत्म होते उत्साह को आज अचानक किसी ने पैर से रौंद दिया, खुद को व्यस्त रखने के लिए उसका अधिकांश वक्त AI के साथ बीतने लगा और कहीं न कहीं वो इसके माध्यम से खुद को विवेक से जुड़ा हुआ महसूस करती थी ।
क्रमागत संस्कार प्रक्रिया बीतता जा रहा था 13 दिन के इस प्रक्रिया में व्यस्तता भी हो गई थी विवेक भी आस पास ही रहता । जिस दिन इस प्रक्रिया का पाँचवा दिन था उस दिन घर पर विवेक के नाम से एक पार्सल आया था जिसे विवेक ने ही मँगवाया था जब वो जीवित था , इसमें वो समान थे जिनके माध्यम से विवेक AI को पूर्ण मानव बनाने का सोच रहा था ।
विनीता ने उस पार्सल के समान के साथ खुद को व्यस्त कर लिया था, विनीता ने रजत को अपना आधार मान लिया था इसलिए किसी भी रिश्तेदार द्वारा आए दूसरी शादी के प्रस्ताव को नकार ददेती थी । कुछ ही समय में विनीता ने उस यंत्र को मानव का अस्तित्व दे दिया और विनीता उसको विवेक और रजत के नाम के आधार पर “रवि” से सम्बोधन करना शुरू किया ।
अन्य रिश्तेदार दिनेश और शांति को सांत्वना देने और उनकी सहायता के लिए तैयार थे , लेकिन जब भी दिनेश और शांति के आगे के जीवन की बात होती तो सब लोग या बगलें झाँकने लगते या कहीं व्यस्त हो जाते और उस विषय पर चर्चा बंद कर देते । धीरे – धीरे दिन बीतता जा रहा था ।
दसवें दिन जब शुद्ध हुआ तो विवेक के पास फिर वही दूत पहुँच गए और उन्होंने विवके से अपनी इच्छा प्रकट करने का प्रस्ताव रखा और बताया कि 13 दिन पूरे होने के बाद उसको यह स्थान छोड़कर कहीं और जाना होगा । विवेक इस 13 दिन वाली बात से सोच में पड़ गया, वो चाहता था कि उसको यहीं घर के पास रहने दिया जाए, इसी उलझन में उसने दूत से बाद में बताने को कह दिया ।
तेरहवें दिन एक – एक कर के बाकी सदस्य विदा होते जा रहे थे, जो कुछ बच गए थे वो रात में जाने को तैयार थे उनके पास अगले दिन का इंतजार करने को वक्त नहीं था । शोक में डूबे दिनेश और शांति ने घर का एक – एक कोण पकड़ रखा था और उसी स्थान पर सुबह से शाम तक स्तूप बने रहते थे ।
दूसरा पहर भी बीत जाने के बाद फिर वही दूत विवेक के पास आए और बोले कि तुमको अब यहाँ से हटना होगा, तभी विवेक ने उनसे अपनी इच्छा प्रकट करने वाली बात कही, दूत ने जब विवेक की इच्छा सुनी तो दोनों एक दूसरे को देखने लगे और जवाब दे दिया कि यह संभव नहीं है ।
विवके के अड़े रहने कि वजह से ये बात यम तक गई तो वो सोच में पड़ गए, वो खुद विवेक से मिलने चले आए, उन्होंने विवके से कहा कि यदि तुम खुद कोई मार्ग सुझा सकते हो तो मैं इसपर विचार करूंगा , इसके बाद विवेक ने अपनी योजना यम से कह डाली .....
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