लघुकथा #01


मैं समझाना तो बहुत चाहता था, मगर ना जाने क्यों कुछ बोल नहीं पा रहा था. अश्कों को तो कब का किसी को बेचा हुआ कह दिया था।

बुरा उनका गुस्सा होना नहीं, शायद उनका लापरवाह होना लग रहा था , बहुत हिम्मत कर के बोलने की कोशिश की तब तक फोन कट गया ।

उनके ख़ंजर से शब्द की तरह वो भी चले गए मुझे बींध कर, इसी घबड़ाहट से ना जाने कब मेरी नींद खुल गई।

नींद के खुलने के साथ खुद को ज़ोर से काटा.....
काश ये सच में सपना ही होता।

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