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भाषा के तकनीकिकरण में सांस्कृतिक चुनौतियाँ

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यूं तो हर भाषा अपने में वैज्ञानिक होती है बल्कि हिंदी की लघु मात्रा (I) और गुरुमात्रा (S) मानो हिंदी व्याकरण की "बाइनरी" हो और इसी वैज्ञानिकता के कारण भाषा सांस्कृतिक होती है । जिस तरह नदी में खनिज की उपलब्धता होती है उसी प्रकार अपने भाषा मूल धर्म में एक लम्बे समय के ऐतिहासिक यात्रा, भौगोलिक परिवेश, राजनीतिक स्थितियाँ और व्यावहारिक परिवर्तन (व्यापार, मनोवृत्ति आदि के कारण) को अनुस्यूत किए रहता है, इसलिए मानवीय मूल्यों का भी इसमें एक उर्वरक की भूमिका है । इसके इतर जिस तरह मानव के अस्तित्व के लिए संस्कृति निहित सभ्यता की आवश्यकता होती है उसी तरह किसी भी भाषा के विन्यास के दो कारक होते हैं, एक सभ्यता और दूसरी संस्कृति इसलिए भाषा के तकनीकीकरण में उसके संस्कृति का समावेशन आवश्यक है।  सभ्यता परिमित होती है, शब्दों के भौतिक क्षेत्र की प्रगति में सभ्यता का योगदान होता है जबकि संस्कृति शब्दों के गुण धर्म में सांस्कृतिक चेतना काम करती है, संस्कृति अपरिमित होती है। "कुएं की गड़ारी" शब्द भर से कुआं का जल तुरंत स्मृति पर रस्सी के सहारे बाल्टी लटक जाती है, अन्य क्षेत्रों में इसे ...