संदेश

जनवरी, 2024 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

राम का भाषाई आदर्श लोकमंगल का प्रतिदर्श है

चित्र
रामचरित नाम राम के आदर्श चरित्र से आया है, यह आदर्श चरित्र जितना ही निराकार है उतना ही यह सगुण भी है और जितना यह सगुण है उतनी ही इसकी व्यापकता है।  इसलिए उनके आदर्शों की गणना तारों को उंगलियों से गिनने के समान है।  सब कुछ होने के बाद सबसे कठिन होता है उसको मानव कल्याण में प्रसारित करना या दूसरों तक संप्रेषित करना । कोई भी चीज़ व्यापक रुप से तभी संप्रेषित हो सकती है जब वह काल विशेष में एक मधुर माध्यम का आवरण धारण किए रहे।  जिस तरह कांटे और गुलाब मिले रहने के बाद भी कांटो पर ध्यान दिए बिना गुलाब हमें आकर्षित कर लेता है उसी प्रकार किसी भी बात को मधुरता से कह देने से काटे रूपी वैचारिक मलिनता समाप्त हो जाती है और गुलाब की सुगंध रूपी मानवीय चेष्टा दुगुनी हो कर खिलने लगती है। अगर आदर्श राम की आत्मा है तो भाषा तन है, और परम ब्रह्म स्वयं राम हैं, इसीलिए किसी भी अच्छी बात को प्रसारित करने के लिए जितना उचित उस बात का अच्छा होना है उतना ही उचित माध्यम का मधुर होना है।  वाल्मीकि जी के रामायण का माध्यम संस्कृत है जो आगे चल कर अवधी में गोस्वामी जी द्वारा रामचरित मानस हो जाना, समय क...