संदेश

फ़रवरी, 2022 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कुमायूँ

चित्र
तरदीद – कथावस्तु, कथानक, पात्र, सभी काल्पनिक हैं, वास्तविकता से इसका कोई सरोकार नहीं है। पूरे 4 घण्टे की देरी के साथ अपने समय से आखिरकार गाड़ी मंजिल पर पहुँच ही गई, प्रशांत ने स्टेशन पर उतर कर नज़र को ऊंचा कर चाय की तलाश की,  और उसी ओर बढ़ने लगा, हल्की लाल चेकदार शर्ट, क्रीम कलर की पैंट, एक सफेद जूता, पीठ पर बैग , चेहरे पर द्वैत भाव जिसमे नौकरी की खुशी और घर से दूर होने का दर्द दोनों ही स्पष्ट था। ज्वाइन करने के बाद प्रशांत ने तुरन्त अपने क्षेत्र को कूच किया, कुमायूँ की वादियाँ उसे बेहद रोमांचित कर रहीं थी, इस रोमांच में पता ही नहीं चला कि कब वो अपने जंगल में आ पहुंचा। लोगों से सुन रखा था कि वन दरोगा का मतलब 'काम नहीं दाम सही', लेकिन उसने निश्चय किया था कि वो किसी भी भ्रष्टाचार में लिप्त नहीं होगा। अगले ही दिन सुबह-सुबह प्रशांत से मिलने माथुर जी आ पहुँचे, उम्र वही तकरीबन 45-50 और पेट को नियंत्रण में रखा हुआ था, चाल में फुर्ती , गोल गोल लबलबाती आंखे और चेहरे पर छोटी सी मुस्कान , मन में गाना गुनगुनाते अंदर घुसे चले आ रहे थे, सब खड़े हो हए , प्रशांत ने भी सलूट किया। प्रशांत- जय...