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प्रकृति से आध्यात्म

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 भारतीय संस्कृतियों में ब्रह्म मुहूर्त को बहुत महत्वपूर्ण समयावधि मानी गयी है जो कि सुबह 4 बजे के आस-पास का समय होता है। लगभग यही समय था, मैं बाहर निकला तो आसमान बहुत ही साफ दिख रहा था, सुबह वाले जीवों की आवाज़, चारो तरफ लोगो के जोरदार सन्नाटे , तभी मेरी नज़र सामने एक वृक्ष पर पड़ी , नीचे से ही ऊपर की तरफ ज़रा सा धनुषाकार में उसका खड़ा होना , पत्तियों का आगे की तरफ से विनम्र भाव मे सज़दा करना , इसे देख मैं सोचने लगा ; क्या पेड़ भी कभी कुछ कहना चाहते होंगे? जानवर तो फिर भी अपने इशारो से , आवाज़ के माध्यम से अपने सुख या कष्ट को व्यक्त कर सकते हैं , परन्तु वृक्ष, पेड़ , पौधे , ये पूरा वनस्पति जगत, ये आकाश, ये समुद्र , क्या ये कभी बोल सकते हैं? अगर बात कर सकते है तो क्या तरीका होगा इनको समझने का?         ये जिज्ञासाएँ होना एक मनुष्य के महत्वपूर्ण लक्षण हैं। परन्तु ये जिज्ञासा थी या मौलिकता, भेद कर पाना कठिन है , ग़ौरतलब ये है कि जिज्ञासा का उद्गम आंखों से होता है; जब चीज़े हमारी आंखों से देखी जाती है तथापि हमारे मष्तिष्क में तरह-तरह के प्रश्न कौतुहल करना आरम्भ कर देतें है...