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वो लम्हा अब भी जीता है

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दफन हुए वो वक्त तो क्या उन्हें याद कर ये आँखे भरता है, यादों के किसी कोने में वो लम्हा अब भी जीता है। वक्त का है बस यही बहाना नहीं कभी ठहरता है, खींची थी जो आँखों मे तस्वीरें देख उन्हें बस हिम्मत भरता है । वो लम्हा अब भी जीता है। जीता जा हर पल जो सीखा है कैद कर उन बिसरों को जो बीता है, छू कर कोने में, उसी को तू कभी हँसता तो रोता है। कल की फिक्र में तू आज खोता है तेरी जिंदगी से तेज वक्त जीता है, पनाह दे कहीं कोने में धूप में छाव सा रहता है देख कैसे वो हमें जोड़ता है। वो लम्हा अब भी जीता है।

हे मनुष्य...

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कहता खुद को विज्ञान रचयिता विचार कोई अलग रच ले प्रकृति पर तेरा वश नहीं खुद को वश में कर ले खतरे में आज मानव जाति फर्ज़ हर कोई समझ ले हे मनुष्य , बात इतनी सी समझ ले