...वहम सब दूर हुए
उम्मीद एक बार फिर जगी की शायद वो तलाश खत्म हुए जिस कंधे पर सुना सकूँ अपनी थकां आँख खुलते वहम सब दूर हुए मैं दोष उनको देता नहीं क्योंकि इस खेल के वो संचालक नहीं गलती तो मेरी ही छिपी कहीं जो पथ से हम है भटके हुए फिर...आँख खुलते वहम सब दूर हुए इसमें भी दुआ आपकी जो अभी तक सार्थक बने हुए अन्यथा नहीं कोई झेल सका सच करीब से है जो देखे हुए फिर...आँख खुलते वहम सब दूर हुए इस करुणा कलित हृदय की आवाज मात्र ये एक है साक्षात देवता(माता-पिता) मात्र ही सच है निखिल जग अब मिथ्या हुए फिर...आँख खुलते वहम सब दूर हुए