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सन्तुलन

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कुछ ख्वाबों के मर जाने से जीवन नहीं मरा करता, ख्वाब हमारी ख्वाहिशों से संबंध हैं; ख्वाहिशें लक्ष्य की यात्रा के पड़ाव अथवा दीर्घ विराम बन जाते हैं, जब हम गलत दिशा में भटके रहते हैं तो वो अपूर्ण पड़ाव (ख्वाब) हमें टूटे नज़र आते हैं, लेकिन वो कहीं न कहीं हमारे बेहतरी के लिए होते हैं ; कभी-कभी इसका क्षणिक आभास होता है और कभी-कभी उसी क्षणिक निराशा को हम दीर्घ बना कर समय नष्ट करते हैं। जीवन के यथार्थ से प्रताड़ित हर विफल व्यक्ति सतही ग्रंथों से धारणाएं बना लेता है, वो व्यक्ति जो इन निराधार धारणाओं से सहमत न हो उन्हें वो नादान और भौतिकवादी प्रतीत होता है और यह कदापि उचित नहीं है, क्षणिक अथवा त्वरित धारणा आपके विवेक को अवरुद्ध करती ही हैं साथ ही पुनः प्रयास की शक्ति को दुर्बल करती हैं, परंतु किन्हीं परिस्थितियों में सही उठते कदम पर भी डर का घना मेघ छाया रहता है तो ऐसे में उसकी तुलना लक्ष्य से कर वर्तमान के असमंजस पर भी पर विजय प्राप्त किया जा सकता है।